क्या 50 वर्षों में पुरूषों की पौरूषता लुप्त हो जायेगी?

केबल पर एक डरावना का प्रोग्राम आता है ना …..चैन से जीना हो तो जाग जाईए…. बड़ा सनसनीखेज़ लगता है वह प्रोग्राम …. और उसे पेश करने वाला का अंदाज़ भी लगभग डराने वाला…आज का मीडिया जब इतने कंपीटीशन के दौर से गुज़र रहा है तो सनसनी नहीं फैलाई जाएगी तो खबरें बिकेंगी कैसे। इलैक्ट्रोनिक मीडिया में तो ऐसा सब कुछ तिल को ताड़ कर के दिखाने वाली बातें के हम अभयस्त से ही हो चुके हैं….और हिंदी एवं आंचलिक भाषाओं में भी कुछ खबरों को सनसनी तरीके से पेश करना एक आम सी बात हो चुकी है।
आज जब मैंने अंग्रेज़ी के अच्छे-खासे सम्मानित पेपर के फ्रंट पेज पर एक न्यूज़ स्टोरी के अंदर यह पढ़ा कि आने वाले 40-50 वर्षों में हो सकता है भारत के सब “मर्द” खस्सी हो जाएं….. मुझे नहीं पता आप इस शब्द खस्सी को समझते हैं कि नहीं… लेकिन हम पंजाबी भाषी इस शब्द का प्रयोग मज़ाक मज़ाक में यदा कदा करते रहते हैं। सीधे सादे शब्दों में कहें तो पुरूष लोग अपनी प्रजननता क्षमता ही अगले चालीस-पचास वर्षों मे खो देंगे…लेकिन ऐसा आखिर क्यों ? यह समझने के लिए इस अंग्रेज़ी पेपर के पहले पन्ने पर प्रकाशिक ख़बर का रूख करना होगा।
हां, तो खबर का शीर्षक ही कुछ ऐसा था … Sperm Counts drop by the year globally. और इसके ऊपर एक  लाल रंग की पट्टी में यह हैडिंग – Worrying Highs, Depressing Lows as Health Crisis Looms.
वापिस उसी शुक्राणुओं के नंबर में लगातार गिरावट आने वाली खबर फिर से देखते हैं …. उस खबर में लिखा है कि लगातार बढ़ रहे तनाव, मोटापा, और प्रदूषण की वजह से वीर्य (स्पर्म)  में मौजूद शुक्राणुओं की संख्या में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है….एक अनुमान के अनुसार पिछले 50 वर्षों में शुक्राणुओं की गिनती में 50 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।
असिस्टैड रिप्रोडक्टिव तकनीक (Assisted Reproductive Technique) …अर्थात् यह जो आई.व्ही.एफ (IVF…in-vitro fertilization ) ..टैस्ट ट्यूब आदि के द्वारा बच्चे के जन्म के जो मुद्दे हैं, ऐसा कहा जा रहा है कि इन तकनीकों के लिये भारतीय दिशा-निर्देश लगभग तैयार हो चुके हैं (जो शीघ्र ही कानून का रूप ले लेंगे)…इन नियमों को तैयार करने वाले चिकित्सक के अनुसार पश्चिमी देशों में वीर्य में शुक्राणुओं की गिनती में कमी नब्बे के दशक के मध्य से हो रही है।
  और इस चिकित्सक का कहना है कि भारत में भी कुछ डाक्टर ऐसा मानते हैं कि यहां पर भी इन शुक्राणुओं में कमी आ रही है…पश्चिमी देशों में किये गये अध्ययन बताते हैं कि प्रत्येक वर्ष शुक्राणुओं की गिनती में दो प्रतिशत की कमी हो रही है और उस रेट से तो अगले 40-50 वर्षों में कोई भी प्रजनन-योग्य पुरूष (fertile man) रहेगा ही नहीं।
कुछ वर्ष पहले भी स्कॉटलैंड में 7500 पुरूषों पर किये गये अध्ययन से पता चला था कि औसत स्पर्म काउंट में 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। ये पुरुष 1989 से 2002 तक एक फर्टिलिटी सैंटर में इलाज के लिये आ रहे थे। कोपनहैगन में हुये एक अध्ययन से पता चला कि शराब, धूम्रपान एवं मोटापे के अलावा कुछ एंडोक्राइन अवरोधक (endocrine disrupters) भी हैं जो इस के लिये जिम्मेदार हैं— दैनिक दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक की बाल्टियां (या दूध की बोतलें) कुछ ऐसे रसायन छोड़ती हैं जो महिला हारमोन, इस्ट्रोजन से मिलते जुलते होते हैं। इस हारमोन की वजह से भी वीर्य में शुक्राणुओं की कमी हो रही होगी, डीडीटी एवं डाईओक्सिन्ज़ (DDT and dioxins) जैसे कीटनाशकों को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
मीडिया डाक्टर –— यह तो थी इंगलिश पेपर में आने वाली खबर की बात, अब मैं अपनी बात कहता हूं। वैसे आप अपने इर्द-गिर्द ध्यान करें, गाड़ीयों, बसों, फुटपाथों पर नज़र दौड़ा कर, जनसंख्या के विस्फोट को देख कर क्या कभी कल्पना कर सकते हैं कि पुरूष का पौरूष अब समाप्त होने की कगार पर है। इसलिए इतना डरने की भी बात नहीं है।
एक अच्छे-खासे इंगलिश के फ्रंट-पेज पर ऐसी खबर देख कर ऐसा लगा कि यह भी एक सनसनी ही फैला दी गई है। जो कुछ अखबार में लिखा होता है लोग अकसर उसे सच मान लेते हैं। लेकिन तथ्यों को सही तरीके स पेश नहीं किया जाता तो अकसर बात का बतंगड बनते देर नहीं लगती।
इस न्यूज़-रिपोर्ट के बारे में मेरे मन में कुछ प्रश्न उठ रहे हैं …..यह खबर तो आज सुबह इतनी अचानक मिली जैसे कि कोई सुनामी आ गई हो… पिछले कईं सालों से शुक्राणु कम हो रहे हैं, हर साल 2 प्रतिशत कम हो रहे हैं और अगले 40-50 वर्षो  में सारे पुरूष अपना पौरूष (fertility) खो देंगे, ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। ऐसा नहीं होता कि अचानक एक दिन सुबह आप अखबार में पढ़ लें कि प्रलय हो जायेगी तो बस यही समझ लें कि अब तो तहस-नहस होनी तय ही है।
एक प्रश्न और है कितने पुरूष ऐसे हैं जिन्होंने कभी अपने वीर्य की जांच करवाई होगी, शायद जिन्हें किसी कारण वजह से किसी डाक्टर ने ही यह जांच करवाने को कहा होगा, वे ही यह जांच करवाते हैं। ऐसे में इन अध्ययनों में ऐसा कौन सी सैंपल पापुलेशन ली गई कि इतना ठोंक-पीट पर यह पोरूषता खत्म होने वाली बात कही जा रही है।
व्यक्तिगत रूप से मुझे इस में कंफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट लगता है … कहीं ऐसा तो नहीं कि अब चूंकि ये कृत्तिम तरीके प्रोमोट किये जाने हैं ….लोगों को पहले ही से फीड कर दो …ताकि वे अपने आप ही शादी के कुछ समय बाद जब मां-बाप न बन पाएं तो अफरातफरी में अपने वीर्य को टैस्ट करवा के, बिना प्रकृति को कोई अवसर दिये बिना, कृत्ति उपायों की तरफ़ लपक पड़ें …….यह भी एक बहुत बड़ी मार्कीट बन चुकी है।
तो फिर क्या इस खबर में सारी बातें ही बेबुनियाद हैं…..नहीं, मैंने ऐसा तो नहीं कहा। सच है कि तरह तरह के नशे की लत की वजह से, लगातार बढ़ता मानसिक तनाव की वजह से, कैमीकल्स के अंधाधुंध इस्तेमाल की वजह से शुक्राणुओं में थोडी बहुत गिरावट आई होगी..(कोई भारतीय अध्ययन हों तो पुष्टि हो…), और इन शुक्राणुओं की गुणवत्ता पर भी बट्टा लगा होगा, लेकिन स्थिति इतनी भयावह भी नहीं है। इसलिए एक बार फिर से पुराना पाठ ध्यान रखें ……….नशों से दूर रहें,  सात्विक भोजन लें और किसी आध्यात्मिक लहर के साथ बहें …… लेकिन एक बार विशेष तौर पर नोट करें कि विशेषकर वे पुरूष जिन्होंने अभी पापा बनना है या अभी अपने परिवार को और भी आगे बढ़ाना है तो वे कृपया लैपटाप जैसे यंत्रों को अपनी गोदी में न ऱखा करें ….इस से होने वाली गर्मी scrotal health के लिये ठीक नहीं है ….ज़ाहिर सी बात है ऐसे में शुक्राणुओं के काउंट (गिनती) एवं गुणवता पर बुरा असर पड़ना स्वाभाविक है ……यह मेरी थ्योरी नहीं है, रिसर्च ने बताया है दोस्तो।

Related – यह लेख लिखने के बाद जब मैं इस आनलाईन स्टोरी को पढ़ रहा था तो मुझे विक्की डोनर का ध्यान तो आया ही और साथ ही साथ उस हीरो नं 1 अन्नू कूपर की विक्की डोनर के प्रोमो में सुनी विशुद्ध पंजाबी गालियों का भी एकदम चेता आ गया।

No fertile men in 50years as sperm counts slide?  

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